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जनजातीय कल्याण केंद्र और अमरकंटक केन्द्रीय विवि के बीच ऐतिहासिक एमओयू सम्पन्न

Kashi Agrawal
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डिंडोरी | 14 जुलाई 2025 —जनजातीय समाज को केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि विकसित भारत @2047 के निर्माता के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए जनजातीय कल्याण केंद्र महाकौशल एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के मध्य आज सावन के सोमवार को एक अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता (MoU) सम्पन्न हुआ। यह समझौता शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, जनकल्याण, वैचारिक जागरूकता और आत्मनिर्भरता जैसे छह परिवर्तनकारी स्तंभों पर आधारित है, जो जनजातीय नवजागरण की ठोस कार्ययोजना प्रस्तुत करता है।

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कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ब्योमकेश त्रिपाठी ने कहा कि यह समझौता केवल औपचारिक अनुबंध नहीं, बल्कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, संवैधानिक मूल्यों और आत्मनिर्भर भारत की त्रयी का जीवंत और क्रांतिकारी स्वरूप है। इसमें संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएँ, पाठ्यक्रम विकास, जनजातीय उद्यमिता मॉडल, तकनीकी साझेदारी और वैश्विक स्तर पर जनजातीय पहचान के ब्रांडिंग की ठोस कार्ययोजनाएँ सम्मिलित हैं। उन्होंने यह भी दृढ़तापूर्वक कहा कि “कोई भी जनजातीय युवा पीछे न रहे—यह समझौता हर क्षेत्र में उनकी सक्रिय और गरिमामयी भागीदारी सुनिश्चित करेगा।” यह समझौता वनोपज आधारित व्यावसायिक प्रशिक्षण, संयुक्त प्रमाणपत्र आधारित कौशल विकास, जनजातीय नवाचार केंद्रों की स्थापना और स्थानीय संसाधनों व पारंपरिक जीवनशैली से जुड़े उद्यमिता कार्यक्रमों को गति प्रदान करेगा। साथ ही नीति सुझाव, संवैधानिक अधिकारों पर जागरूकता, और जल-जंगल-जमीन, शिक्षा और रोजगार से संबंधित योजनाओं पर संवाद के माध्यम से जनजातीय समाज को वैचारिक रूप से सशक्त किया जाएगा। यह समझौता युवाओं को नौकरी मांगने वाले नहीं, रोजगार देने वाले उद्यमी के रूप में विकसित करने का आत्मविश्वास प्रदान करेगा।

डॉ. एम.एल. साहू, अध्यक्ष, जनजातीय कल्याण केंद्र महाकौशल ने अपने वक्तव्य में बताया कि इस एमओयू के अंतर्गत जनजातीय क्षेत्रों में बेसलाइन और आवश्यकताएं मूल्यांकन सर्वेक्षण, आयुष मंत्रालय के सहयोग से स्वास्थ्य मॉडल का विकास, और जनजातीय ज्ञान-संसाधन पुस्तकालयों एवं संग्रहालयों की स्थापना की जाएगी। उन्होंने कहा कि कुपोषण, मातृ मृत्यु दर, सिकलसेल, थैलेसीमिया जैसी गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों पर विशेष ध्यान देते हुए ‘स्वस्थ जनजाति समाज, समर्थ भारत’ की अवधारणा को साकार किया जाएगा। इसके साथ ही लोककला, लोकगीत, चित्रकला, पारंपरिक हस्तशिल्प और मौखिक परंपराओं को डिजिटल आर्काइव, संग्रहालयों और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के माध्यम से वैश्विक मंच पर स्थापित किया जाएगा।

इस ऐतिहासिक अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख श्री राजकुमार मटाले, कुलपति प्रो. ब्योमकेश त्रिपाठी, अध्यक्ष डॉ. एम.एल. साहू, स्वदेशी शोध संस्थान के राष्ट्रीय सचिव प्रो. विकास सिंह, अधिवक्ता ज्ञानेंद्र सिंह, शिशिर सिंह बिसेन, श्याम जी, जम सिंह जी, श्रवण पटेल, डॉ. दिग्विजय फुकन, डॉ. धर्मेन्द्र झारिया सहित अनेक शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता एवं जनजातीय प्रतिनिधि उपस्थित रहे। यह समझौता जनजातीय सशक्तिकरण की दिशा में भारत के समावेशी विकास हेतु एक प्रेरणादायक मील का पत्थर सिद्ध होगा।

 

 

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